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Tuesday, May 17, 2011

वास्तव में मनुष्य बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है

 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने अल्लाह की नेमत को कुफ़्र से बदल डाला औऱ अपनी क़ौम को विनाश-गृह में उतार दिया; (28) जहन्नम में, जिसमें वे झोंके जाएँगे और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है! (29) और उन्होंने अल्लाह के प्रतिद्वन्दी बना दिए, ताकि परिणामस्वरूप वे उन्हें उसके मार्ग से भटका दें। कह दो, "थोड़े दिन मज़े ले लो। अन्ततः तुम्हें आग ही की ओर जाना है।" (30) मेरे जो बन्दे ईमान लाए है उनसे कह दो कि वे नमाज़ की पाबन्दी करें और हमने उन्हें जो कुछ दिया है उसमें से छुपे और खुले ख़र्च करें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिनमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न मैत्री (31) वह अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती की सृष्टि की और आकाश से पानी उतारा, फिर वह उसके द्वारा कितने ही पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया। और नौका को तुम्हारे काम में लगाया, ताकि समुद्र में उसके आदेश से चले और नदियों को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगाया (32) और सूर्य और चन्द्रमा को तुम्हारे लिए कार्यरत किया और एक नियत विधान के अधीन निरंतर गतिशील है। और रात औऱ दिन को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगा रखा है (33) और हर उस चीज़ में से तुम्हें दिया जो तुमने उससे माँगा यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना नहीं कर सकते। वास्तव में मनुष्य बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है (34)
                                                       क़ुरआन 14, 28-34