1. हे आस्थावान लोगो, धैर्य और नमाज़ से मदद लो, निःसंदेह अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। -कुरआन, 2, 153
2. निःसंदेह जो कोई गुनाह से डरता है और धैर्य रखता है तो अल्लाह ऐसे पवित्र आचरण वाले लोगों का बदला (पुण्य) नष्ट नहीं करता। -कुरआन, 16, 96
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अरबी में सब्र व्यापक अर्थों में प्रयुक्त होता है जबकि उर्दू में यह शब्द बहुत सीमित अर्थ को व्यक्त करता है। सब्र का अर्थ है ‘डटे रहना‘। इंसान के जीवन में ऐसे बहुत से मौक़े आते हैं जब वह सत्य और न्याय से विचलित हो जाता है, कभी किसी लालच में पड़कर और कभी किसी नुक्सान के डर से। जो आदमी समाज में कोई सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहता है, उसे पहले खुद में सकारात्मक परिवर्तन लाना होगा। अपने इरादे को मज़बूत बनाना होगा, खुद में सब्र का माद्दा पैदा करना होगा। जो लोग ‘सब्र‘ का गुण अपने अंदर रखते हैं वे मुसीबतों और आज़माईशों से कभी नहीं घबराते और अंत में विजय पाते हैं।
सच्चा गुरू वास्तव में परमेश्वर है। वह जानता है कि सफलता पाने के लिए इंसान के अंदर किन गुणों का होना ज़रूरी है। इसीलिए वह अपने बंदों को सब्र की तालीम देता है। जहां सब्र होगा वहां टकराव कम होगा और एक दिन वह ख़त्म भी होगा। टकराव का ख़ात्मा केवल सब्र से ही मुमकिन है।
इसलाम का धात्वर्थ है शांति जो कि सब्र के बिना मुमकिन ही नहीं है। इसीलिए इसलाम पर बिना सब्र के अमल भी मुमकिन नहीं है। यह बात हर उस आदमी को जान लेनी चाहिए जो कि परमेश्वर की ओर, सफलता की ओर और अपने जन्म के मूल उद्देश्य की ओर बढ़ने का इरादा रखता हो, जो कि अपने और अपने समाज के कल्याण की इच्छा रखता हो।