1. और एक दूसरे के माल आपस में धोखाधड़ी से न खाओ और न ही उन्हें अपने हाकिमों तक इस मक़सद से पहुंचाओ कि जनता की सम्पत्ति में से कुछ भाग भ्रष्टाचार के ज़रिए खुद खा जाओ और (जबकि) तुम जानते हो -कुरआन, 2, 188
2. ऐ ईमान वालो, एक दूसरे की सम्पत्ति अनाधिकृत रूप से मत खाओ मगर यह कि आपसी सहमति से व्यापार हो; आपस में रक्तपात (भी) न करो; निःसंदेह अल्लाह तुम पर कृपालु है। -कुरआन, 2, 172
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भ्रष्टाचार एक बुराई है जिसके पीछे इंसान की अनुशासनहीनता और उसका लालच होता है। जो लोग ईश्वर अल्लाह पर विश्वास रखते हैं, उनसे अल्लाह कह रहा है कि माल हासिल करने के लिए भ्रष्टाचार मत करो। न तो सरकारी माल को धोखाधड़ी करके खा जाओ और न ही नाजायज़ से तरीक़े से जनता के माल अपने हाकिमों तक पहुंचाओ कि उसमें से एक हिस्सा खुद खा जाओ। इस तरह ईमान वालों के लिए भ्रष्टाचार के ज़रिए माल हासिल करने को हराम ठहराता है। जो लोग इस शिक्षा पर चलते हैं, उनके दिल को सुकून मिलता है, उन्हें समाज में ऐतबार की नज़र से देखा जाता है और उनके माल और उनकी औलाद में अल्लाह बरकत देता है। ग़लत तरीक़ों से माल कमाकर समाज के लोग खुद को और अपने बच्चों को जिस ऐशो-इशरत का आदी बना देते हैं, वह ऐशो-इशरत भ्रष्ट आदमी को उसके जीवन के असली मक़सद से दूर कर देता है। उसके भ्रष्टाचार की अपने आप में यह सज़ा बिल्कुल नग़द है। इसी के साथ वह अपने बच्चों को भी नेकी और सच्चाई से दूर करने का काम करता है जिसकी वजह से वे भी दुनिया की बहुत सी बुराईयों के शिकार होकर तन-मन से दुखी रहते हैं।
अल्लाह की मेहरबानी यह है कि उसने बता दिया है कि भ्रष्टाचार मत करो, इसमें तुम्हारा भला नहीं है। अल्लाह की मेहरबानी यह है कि उसने आपस में खून बहाने को वर्जित ठहराया है। अगर समाज इन उसूलों पर चले तो समाज में शांति और विकास होगा और सभी उन्नति करेंगे। सभी लोग समृद्ध होंगे। हरेक आदमी सुरक्षित होगा। यह परिणाम होगा उस अनुशासन की पाबंदी का, जिसकी शिक्षा अल्लाह देता है। अल्लाह पर ईमान का दावा तब तक क़ाबिले ऐतबार ही नहीं है जब तक कि आदमी अल्लाह के ठहराए हलाल को हलाल और उसके ठहराए हराम को हराम न मान ले और वह तब तक भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकता जब तक कि वह इनके मुताबिक़ खुद को संवार न ले।