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Wednesday, March 9, 2011

जिंदगी के सच्चे सुख के लिए आपको अपनी ख़्वाहिशों को सामूहिक रूप से संतुलित करना होगा

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि  

1. दौलतमंदों और पूंजीपतियों की ख़ैरात और चंदे पर चलने वाली अंजुमनें हमेशा दौलतमंदों की ताक़त और मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को क़ायम रखने में मददगार साबित होती हैं । वे गरीबों को सब्र और धैर्य का उपदेश करके उनके इन्क़लाबी जज़्बात को ठंडा करती रहती हैं ताकि पूंजीपति बेख़ौफ़ उनका ख़ून चूसते रहें ।
2. शोहरत और नामवरी की ख़्वाहिश मामूली ज़हन रखने वालों की एक खुली हुई कमजोरी है और बड़े बुद्धिजीवियों की गुप्त कमज़ोरी है।

हमारे देश की राजनीतिक संस्थाएं भी पूंजीपतियों और बुद्धिजीवियों के बल पर चलती हैं , इसीलिए शोषण भ्रष्टाचार का बोलबाला आज आम है ।
जनता आज मौजूदा सरकार से नाराज़ है , पूर्व सरकार से भी वह पहले नाराज़ हो चुकी है और अब जो नई सरकार आएगी , उससे भी बहुत जल्द यह जनता नाराज़ हो जाएगी क्योंकि चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने लेकिन राज चलता है पूँजीपतियों का ही। पत्र-पत्रिकाओं में लिखने वाले बुद्धिजीवियों का ख़र्चा-पानी भी इनसे ही चलता है। पूंजीपति जब इन पार्टियों को चंदा देते हैं तो फिर वे उसे कई गुना करके जनता से वसूलते हैं। खाने-पीने और बरतने की तमाम ज़रूरी चीज़ें महंगी हो जाती हैं। ज़मीन के जंगल से लेकर पानी तक पर, हर चीज़ पर ये पूंजीपति क़ानून बनवाकर क़ाबिज़ हो जाते हैं। ज़मीन के जंगल से लेकर आसमान के मंगल तक , हर जगह पर ये क़ब्ज़े की फ़िराक़ में लगे हुए हैं लेकिन 'ज़्यादा पाने' इनकी ख्वाहिश और ज्यादा बढ़ती चली जा रही है । ख्वाहिश की प्रकृति यही है ।
असल समस्या यह है कि जनता के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है कि राजनीतिक संस्थाआओं को पूँजीपतियों के प्रभाव से कैसे आज़ाद कराया जाए ?
नेताओं और बुद्धिजीवियों के दिलों से लालच और ऐशो आराम की ख़्वाहिश कैसे निकाली जाए ?
उन्हें थोड़े में संतुष्ट रहना कैसे सिखाया जाए ?
हमें मारने वाली चीज़ यही 'ज़्यादा की ख़्वाहिश' है , आज से नहीं बल्कि सदा से। भारतीय ऋषियों ने भी इसे चिन्हित किया है और जब उनके 'ज्ञान' को भुला दिया गया तो फिर कुरआन ने भी तबाही का कारण यही बताया है :
'ज़्यादती की चाहत ने तुम्हें ग़ाफ़िल कर दिया । यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तान जा पहुँचे।' -103, 1-2
ज़्यादती की इसी चाहत में आज इंसान ने अपने ज़मीर , अपनी ग़ैरत और अपनी हया का गला ख़ुद अपने हाथों से घोंट डाला है , ख़ास व आम हरेक तबक़े ने । ऐसे में दूसरों के साथ साथ अपना भी जायज़ा लेना ज़रूरी है ।
इसी लेख को कुछ अंतर के साथ आप देख सकते हैं यहाँ :

ज़्यादा पाने की चाहत में ज़मीर की मौत

 http://allindiabloggersassociation.blogspot.com/2011/03/blog-post_6270.html