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Friday, November 18, 2011

क़ुरबानी और मांसाहार के संबंध में अल्लाह का हुक्म

ऐ ईमान लानेवालो! प्रतिबन्धों (प्रतिज्ञाओं, समझौतों आदि) का पूर्ण रूप से पालन करो। तुम्हारे लिए चौपायों की जाति के जानवर हलाल हैं सिवाय उनके जो तुम्हें बताए जा रहें हैं; लेकिन जब तुम इहराम की दशा में हो तो शिकार को हलाल न समझना। निस्संदेह अल्लाह जो चाहते है, आदेश देता है (1) 
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की निशानियों का अनादर न करो; न आदर के महीनों का, न क़ुरबानी के जानवरों का और न जानवरों का जिनका गरदनों में पट्टे पड़े हो और न उन लोगों का जो अपने रब के अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की चाह में प्रतिष्ठित गृह (काबा) को जाते हो। और जब इहराम की दशा से बाहर हो जाओ तो शिकार करो। और ऐसा न हो कि एक गिरोह की शत्रुता, जिसने तुम्हारे लिए प्रतिष्ठित घर का रास्ता बन्द कर दिया था, तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम ज़्यादती करने लगो। हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो। अल्लाह का डर रखो; निश्चय ही अल्लाह बड़ा कठोर दंड देनेवाला है (2) 
- अलक़ुरआन, 5, 1-2
और प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुरबानी का विधान किया, ताकि वे उन जानवरों अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें प्रदान किए हैं। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनानेवालों को शुभ सूचना दे दो (34)  
ये वे लोग है कि जब अल्लाह को याद किया जाता है तो उनके दिल दहल जाते है और जो मुसीबत उनपर आती है उसपर धैर्य से काम लेते है और नमाज़ को क़ायम करते है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते है (35)  
(क़ुरबानी के) ऊँटों को हमने तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में से बनाया है। तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः खड़ा करके उनपर अल्लाह का नाम लो। फिर जब उनके पहलू भूमि से आ लगें तो उनमें से स्वयं भी खाओ औऱ संतोष से बैठनेवालों को भी खिलाओ और माँगनेवालों को भी। ऐसा ही करो। हमने उनको तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ (36)
- अलक़ुरआन, 22, 34-36

Tuesday, November 15, 2011

पवित्र क़ुरआन में क़ुरबानी का हुक्म

फ़सल्लि लिरब्बिका वन्हर.
अर्थात पस तू अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ और क़ुरबानी कर।
अलक़ुरआन, 108, 2
तफ़्सीर - यानि नमाज़ भी सिर्फ़ एक अल्लाह के लिए और क़ुरबानी भी सिर्फ़ एक अल्लाह के नाम पर। मुश्रिकीन की तरह उनमें दूसरों को शरीक न कर।
‘नह्र‘ के अस्ल अर्थ हैं ऊंट के हलक़ूम में नेज़ा या छुरी मारकर उसे ज़िब्ह करना। दूसरे जानवरों को ज़मीन पर लिटा कर उनके गलों पर छुरी फेरी जाती है उसे ज़िब्ह करना कहते हैं लेकिन यहां ‘नह्र‘ से मुराद मुत्लक़ क़ुरबानी है। इसके अलावा इसमें बतौर सदक़ा व ख़ैरात जानवर क़ुरबान करना, हज के मौक़े पर मिना में और ईदुल अज़्हा के मौक़े पर क़ुरबानी करना सब शामिल हैं।
 
अनुवाद: मौलाना मुहम्मद जूनागढ़ी साहब
तफ़्सीर: मौलाना सलाहुद्दीन यूसुफ़ साहब
यह अनुवाद और यह तफ़्सीर सऊदी हुकूमत की तरफ़ से प्रकाशित की गई है।
# उर्दू से हिंदी अनुवाद: डा. अनवर जमाल

Sunday, August 7, 2011

इंसान की नफ़रतें ही उसके ख़ात्मे का सबब बनेंगी : क़ुर'आन की भविष्यवाणी

इंसान अपने लालच और नफ़रत की वजह से सदा से लड़ता आ रहा है और  इसका ख़ात्मा इसकी आपस की लड़ाई से ही होगा। सूरा ए यासीन की आयत नं. 48-49 में भी यही बताया गया है।

और वे (सत्य का इन्कार करने वाले और समाज का शोषण करने वाले चौधरी) कहते हैं कि (क़ियामत का) यह वादा कब पूरा होगा ? अगर तुम सच्चे हो ?
ये लोग बस एक चिंघाड़ की राह देख रहे हैं जो उन्हें आ पकड़ेगी और वे झगड़ते ही रह जाएंगे।

(सूरा ए यासीन , आयत नं. 48-49) 

Wednesday, June 15, 2011

ग़ददारों के लक्षण और उनके बारे में अल्लाह की नीति

कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हैं, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते (8) वे अल्लाह और ईमानवालों के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि धोखा वे स्वयं अपने-आपको ही दे रहे हैं, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते(9) उनके दिलों में रोग था तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके लिए झूठ बोलते रहने के कारण उनके लिए एक दुखद यातना है (10) और जब उनसे कहा जाता है कि "ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो", तो कहते हैं, "हम तो केवल सुधारक है।""(11) जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता (12) और जब उनसे कहा जाता है, "ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं", कहते हैं, "क्या हम ईमान लाए जैसे कम समझ लोग ईमान लाए हैं?" जान लो, वही कम समझ हैं परन्तु जानते नहीं (13) और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते, "हम भी ईमान लाए हैं," और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, "हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।" (14) अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे हैं (15) यही वे लोग हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार में न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके (16)
                                                               - क़ुरआन, 2, 8-16  

Monday, June 13, 2011

अल्लाह के विशेष गुण जो किसी सृष्टि में नहीं है.


अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यंत दयावान है.
कह दो ! अल्लाह एक है .
अल्लाह बेनियाज़ (निरपेक्ष) है. 
न वह किसी की औलाद है और न ही कोई उसकी औलाद है 
और न ही कोई उसका समकक्ष है.

-कुरआन, 112 

Saturday, June 11, 2011

तरह तरह से अपनी औलाद का क़त्ल करने वालों को अल्लाह का आदेश

और अपनी औलाद को भूख के डर से क़त्ल न करो, हम ही उन को रोज़ी देते हैं और तुम को भी। यक़ीनन उनका क़त्ल बड़ा गुनाह है ।

Tuesday, June 7, 2011

मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ

 (अल्लाह ने शैतान से) कहा, "अच्छा, तू निकल जा यहाँ से, क्योंकि तुझपर फिटकार है! (34) निश्चय ही बदले के दिन तक तुझ पर धिक्कार है।" (35) उसने कहा, "मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहलत दे, जबकि सब उठाए जाएँगे।" (36) कहा, "अच्छा, तुझे मुहलत है, (37) उस दिन तक के लिए जिसका समय ज्ञात एवं नियत है।" (38) उसने कहा, "मेरे रब! इसलिए कि तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित कर दिया है, अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूँगा और उन सबको बहकाकर रहूँगा,(39) सिवाय उनके जो तेरे चुने हुए बन्दे होंगे।" (40) कहा, "मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है, (41) मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों को जो तेरे पीछे हो लें(42) निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है (43)उसके सात द्वार है। प्रत्येक द्वार के लिए एक ख़ास हिस्सा होगा।"(44) निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे, (45) "प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!" (46) उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे (47) उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी औऱ न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे(48) मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ; (49) और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है (50)    -क़ुरआन, 15, 34-50