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Tuesday, June 7, 2011

मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ

 (अल्लाह ने शैतान से) कहा, "अच्छा, तू निकल जा यहाँ से, क्योंकि तुझपर फिटकार है! (34) निश्चय ही बदले के दिन तक तुझ पर धिक्कार है।" (35) उसने कहा, "मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहलत दे, जबकि सब उठाए जाएँगे।" (36) कहा, "अच्छा, तुझे मुहलत है, (37) उस दिन तक के लिए जिसका समय ज्ञात एवं नियत है।" (38) उसने कहा, "मेरे रब! इसलिए कि तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित कर दिया है, अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूँगा और उन सबको बहकाकर रहूँगा,(39) सिवाय उनके जो तेरे चुने हुए बन्दे होंगे।" (40) कहा, "मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है, (41) मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों को जो तेरे पीछे हो लें(42) निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है (43)उसके सात द्वार है। प्रत्येक द्वार के लिए एक ख़ास हिस्सा होगा।"(44) निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे, (45) "प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!" (46) उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे (47) उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी औऱ न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे(48) मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ; (49) और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है (50)    -क़ुरआन, 15, 34-50