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Saturday, May 28, 2011

प्रशंसा अल्लाह ही के लिए हैं जो सारे संसार का रब है

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान है। 
(1)प्रशंसा अल्लाह ही के लिए हैं जो सारे संसार का रब है (2) बड़ा कृपालु, अत्यन्त दयावान हैं (3) बदला दिए जाने के दिन का मालिक हैं (4) हम तेरी बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं(5) हमें सीधे मार्ग पर चला (6) उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट (7)


'अल-फ़ातिहा', यह क़ुरआन की पहली सूरा है. अल्लाह ने इस दुआ की तालीम अपने बन्दों को दी 
ताकि लोगों को मालूम हो जाए कि दुआ किससे और कैसे मांगी जाये ? 
और यह भी कि दुआ में क्या माँगा जाए ? 

Friday, May 27, 2011

ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते

अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह किताब अर्थात स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं(1) ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते ! (2) छोड़ो उन्हें खाएँ और मज़े उड़ाएँ और (लम्बी) आशा उन्हें भुलावे में डाले रखे। उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा! (3) हमने जिस बस्ती को भी विनष्ट किया है, उसके लिए अनिवार्यतः एक निश्चित फ़ैसला रहा है!(4) किसी समुदाय के लोग न अपने निश्चि‍त समय से आगे बढ़ सकते है और न वे पीछे रह सकते है (5) वे कहते है, "ऐ व्यक्ति, जिसपर अनुस्मरण अवतरित हुआ, तुम निश्चय ही दीवाने हो! (6)यदि तुम सच्चे हो तो हमारे समक्ष फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आते?"(7) फ़रिश्तों को हम केवल सत्य के प्रयोजन हेतु उतारते है और उस समय लोगों को मुहलत नहीं मिलेगी (8) यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं (9)  
              क़ुरआन, 15, 1-9 

Thursday, May 26, 2011

कर्मफल के बारे में अल्लाह की नीति

अपने सिर उठाए भागे चले जा रहे होंगे; उनकी निगाह स्वयं उनकी अपनी ओर भी न फिरेगी और उनके दिल उड़े जा रहे होंगे (43)लोगों को उस दिन से डराओ, जब यातना उन्हें आ लेगी। उस समय अत्याचारी लोग कहेंगे, "हमारे रब! हमें थोड़ी-सी मुहलत दे दे। हम तेरे आमंत्रण को स्वीकार करेंगे और रसूलों का अनुसरण करेंगे।" कहा जाएगा, "क्या तुम इससे पहले क़समें नहीं खाया करते थे कि हमारा तो पतन ही न होगा?" (44) तुम लोगों की बस्तियों में रह-बस चुके थे, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किया था और तुमपर अच्छी तरह स्पष्ट हो चुका था कि उनके साथ हमने कैसा मामला किया और हमने तुम्हारे लिए कितनी ही मिशालें बयान की थी।"(45) वे अपनी चाल चल चुक हैं। अल्लाह के पास भी उनके लिए चाल मौजूद थी, यद्यपि उनकी चाल ऐसी ही क्यों न रही हो जिससे पर्वत भी अपने स्थान से टल जाएँ (46) अतः यह न समझना कि अल्लाह अपने रसूलों से किए हुए अपने वादे के विरुद्ध जाएगा। अल्लाह तो अपार शक्तिवाला, प्रतिशोधक है (47) जिस दिन यह धरती दूसरी धरती से बदल दी जाएगी और आकाश भी। और वे सब के सब अल्लाह के सामने खुलकर आ जाएँगे, जो अकेला है, सबपर जिसका आधिपत्य है (48) और उस दिन तुम अपराधियों को देखोगे कि ज़ंजीरों में जकड़े हुए है (49) उनके परिधान तारकोल के होंगे और आग उनके चहरों पर छा रही होगी, (50) ताकि अल्लाह प्रत्येक जीव को उसकी कमाई का बदला दे। निश्चय ही अल्लाह जल्द हिसाब लेनेवाला है (51) यह लोगों को सन्देश पहुँचा देना है (ताकि वे इसे ध्यानपूर्वक सुनें) और ताकि उन्हें इसके द्वारा सावधान कर दिया जाए और ताकि वे जान लें कि वही अकेला पूज्य है और ताकि वे सचेत हो जाएँ, तो बुद्धि और समझ रखते है (52)         क़ुरआन, 14, 43-52 

Tuesday, May 24, 2011

अल्लाह से तो कोई चीज़ न धरती में छिपी है और न आकाश में Allah, Lord of the worlds

याद करो जब इबराहीम ने कहा था, "मेरे रब! इस भूभाग (मक्का) को शान्तिमय बना दे और मुझे और मेरी सन्तान को इससे बचा कि हम मूर्तियों को पूजने लग जाए (35) मेरे रब! इन्होंने (इन मूर्तियों नॆ) बहुत से लोगों को पथभ्रष्ट किया है। अतः जिस किसी ने मॆरा अनुसरण किया वह मेरा है और जिस ने मेरी अवज्ञा की तो निश्चय ही तू बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है (36) मेरे रब! मैंने एक ऐसी घाटी में जहाँ कृषि-योग्य भूमि नहीं अपनी सन्तान के एक हिस्से को तेरे प्रतिष्ठित घर (काबा) के निकट बसा दिया है। हमारे रब! ताकि वे नमाज़ क़ायम करें। अतः तू लोगों के दिलों को उनकी ओर झुका दे और उन्हें फलों और पैदावार की आजीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ बने (37) हमारे रब! तू जानता ही है जो कुछ हम छिपाते है और जो कुछ प्रकट करते है। अल्लाह से तो कोई चीज़ न धरती में छिपी है और न आकाश में (38) सारी प्रशंसा है उस अल्लाह की जिसने बुढ़ापे के होते हुए भी मुझे इसमाईल और इसहाक़ दिए। निस्संदेह मेरा रब प्रार्थना अवश्य सुनता है (39) मेरे रब! मुझे और मेरी सन्तान को नमाज़ क़ायम करनेवाला बना। हमारे रब! और हमारी प्रार्थना स्वीकार कर (40) हमारे रब! मुझे और मेरे माँ-बाप को और मोमिनों को उस दिन क्षमाकर देना, जिस दिन हिसाब का मामला पेश आएगा।" (41) अब ये अत्याचारी जो कुछ कर रहे है, उससे अल्लाह को असावधान न समझो। वह तो इन्हें बस उस दिन तक के लिए टाल रहा है जबकि आँखे फटी की फटी रह जाएँगी,(42)
क़ुरआन, 14 , 35-42 

Tuesday, May 17, 2011

वास्तव में मनुष्य बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है

 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने अल्लाह की नेमत को कुफ़्र से बदल डाला औऱ अपनी क़ौम को विनाश-गृह में उतार दिया; (28) जहन्नम में, जिसमें वे झोंके जाएँगे और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है! (29) और उन्होंने अल्लाह के प्रतिद्वन्दी बना दिए, ताकि परिणामस्वरूप वे उन्हें उसके मार्ग से भटका दें। कह दो, "थोड़े दिन मज़े ले लो। अन्ततः तुम्हें आग ही की ओर जाना है।" (30) मेरे जो बन्दे ईमान लाए है उनसे कह दो कि वे नमाज़ की पाबन्दी करें और हमने उन्हें जो कुछ दिया है उसमें से छुपे और खुले ख़र्च करें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिनमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न मैत्री (31) वह अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती की सृष्टि की और आकाश से पानी उतारा, फिर वह उसके द्वारा कितने ही पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया। और नौका को तुम्हारे काम में लगाया, ताकि समुद्र में उसके आदेश से चले और नदियों को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगाया (32) और सूर्य और चन्द्रमा को तुम्हारे लिए कार्यरत किया और एक नियत विधान के अधीन निरंतर गतिशील है। और रात औऱ दिन को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगा रखा है (33) और हर उस चीज़ में से तुम्हें दिया जो तुमने उससे माँगा यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना नहीं कर सकते। वास्तव में मनुष्य बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है (34)
                                                       क़ुरआन 14, 28-34  

Sunday, May 15, 2011

अल्लाह का फ़रमान है कि 'मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी'


निश्चय ही हमने लुक़मान को तत्वदर्शिता प्रदान की थी कि अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दिखलाओ और जो कोई कृतज्ञता दिखलाए, वह अपने ही भले के लिए कृतज्ञता दिखलाता है। और जिसने अकृतज्ञता दिखलाई तो अल्लाह वास्तव में निस्पृह, प्रशंसनीय है(12) याद करो जब लुकमान ने अपने बेटे से, उसे नसीहत करते हुए कहा, "ऐ मेरे बेटे! अल्लाह का साझी न ठहराना। निश्चय ही शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है।" (13) और हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है - उसकी माँ ने निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे - कि "मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी। अंततः मेरी ही ओर आना है (14) किन्तु यदि वे तुझपर दबाव डाले कि तू किसी को मेरे साथ साझी ठहराए, जिसका तुझे ज्ञान नहीं, तो उसकी बात न मानना और दुनिया में उसके साथ भले तरीके से रहना। किन्तु अनुसरण उस व्यक्ति के मार्ग का करना जो मेरी ओर रुजू हो। फिर तुम सबको मेरी ही ओर पलटना है; फिर मैं तुम्हें बता दूँगा जो कुछ तुम करते रहे होगे।"- (15) "ऐ मेरे बेटे! इसमें सन्देह नहीं कि यदि वह राई के दाने के बराबर भी हो, फिर वह किसी चट्टान के बीच हो या आकाशों में हो या धरती में हो, अल्लाह उसे ला उपस्थित करेगा। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है। (16) "ऐ मेरे बेटे! नमाज़ का आयोजन कर और भलाई का हुक्म दे और बुराई से रोक और जो मुसीबत भी तुझपर पड़े उसपर धैर्य से काम ले। निस्संदेह ये उन कामों में से है जो अनिवार्य और ढृढसंकल्प के काम है (17) "और लोगों से अपना रूख़ न फेर और न धरती में इतराकर चल। निश्चय ही अल्लाह किसी अहंकारी, डींग मारनेवाले को पसन्द नहीं करता (18) "और अपनी चाल में सहजता और संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज़ धीमी रख। निस्संदेह आवाज़ों में सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है।" (19) 
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने, जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, सबको तुम्हारे काम में लगा रखा है और उसने तुमपर अपनी प्रकट और अप्रकट अनुकम्पाएँ पूर्ण कर दी है? इसपर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अल्लाह के विषय में बिना किसी ज्ञान, बिना किसी मार्गदर्शन और बिना किसी प्रकाशमान किताब के झगड़ते हैं (20) अब जब उनसे कहा जाता है कि "उस चीज़ का अनुसरण करो जो अल्लाह ने उतारी है," तो कहते हैं, "नहीं, बल्कि हम तो उस चीज़ का अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या यद्यपि शैतान उनको भड़कती आग की यातना की ओर बुला रहा हो तो भी ?  (21)
                                              क़ुरआन, 31, 12-21
Please see
http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/31:12

Friday, May 13, 2011

माँ-बाप के बारे में अल्लाह का हुक्म , जिसका पालन हर इंसान पर अनिवार्य है Qur'anic teachings

तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उस (अल्लाह ) के सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्‍टापूर्वक बात करो.
- क़ुरआन 17 , 24

Wednesday, May 11, 2011

धैर्यवानों को नेक कामों का बदला मालिक ज़रूर देता है

... और जो लोग धैर्य रखते हैं हम उनके अच्छे कामों के बदले में उनका हक उन्हें अवश्य देंगे.
 -क़ुरआन, 16 , 96 

Wednesday, May 4, 2011

ब्याज के विषय में अल्लाह की नीति और ब्याजख़ोरों के लिए उसका दंड


ऐ आस्थावान लोगो ! मत खाओ ब्याज दूने पर दूना और अल्लाह से डरो ताकि तुम्हारा भला हो और बचो उस आग से जो अवज्ञाकारी और इन्कारियों के लिए तैयार हुई है। -क़ुरआन, 3, 130 व 131
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दुनिया की तबाही के पीछे माल की हवस का बहुत बड़ा हाथ है। ब्याज का लेन-देन लोगों के जीवन को कठिन बनाता है। भारत में लाखों किसान-मज़दूरों की आत्महत्या के पीछे यही ब्याज है और इसी के कारण करोड़ों घरों का सुख-चैन तबाह है। ब्याजख़ोर लोग क़र्ज़ के फंदे में फंसे हुए लोगों की आबरू से भी खेलते हैं। इस तरह समाज के एक छोटे से वर्ग के हाथ में बेतहाशा संपत्ति इकठ्ठी हो जाती है और दूसरी तरफ़ एक बड़ा वर्ग अपनी बुनियादी तालीम से भी महरूम रह जाता है। यह हालत समाज में ग़रीब तबक़े के लिए जीते-जी नर्क भोगने के समान हो जाती है। ऐसे हालात पैदा करने वालों के लिए परलोक में आग के सिवा के कुछ और नहीं हो सकता। परलोक में आप वही काटेंगे जो कि आपने इस दुनिया में बोया होगा।
अब आप देख सकते हैं कि आप कहां जा रहे हैं ?
आग में या बाग़ में ?

परलोक से पहले इस दुनिया में भी ब्याजख़ोर पूंजीपति वर्ग को अपने सताए हुए लोगों की तरफ़ से तरह-तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है। उनके पास माल का ढेर बहुत से अपराधियों को भी अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। जिसके कारण कभी उनके बच्चों का अपहरण होता रहता है और कभी हफ़्ता वसूली के लिए किसी डॉन का फ़ोन आ जाता है। कभी उनका कोई नौकर ही उन्हें क़त्ल करके उनका माल-असबाब लेकर फ़रार हो जाता है।
उन्होंने दूसरों की शांति लूटी तो सुख-चैन उन्हें भी नसीब नहीं होता और जब कोई बड़ा परिवर्तन होता है तो भी इन पूंजीपतियों की शामत आ जाती है।

अल्लाह के नियम के विरूद्ध जाकर इंसान कभी शांति नहीं पा सकता, यह अटल सत्य है।

Tuesday, May 3, 2011

व्यभिचार के निकट भी न जाओ Adultery

और व्यभिचार के निकट भी न जाओ, निःसंदेह वह निर्लज्जता और घृणित कर्म है। -कुरआन 17, 32

Sunday, May 1, 2011

जीवन का एक मक़सद है, उसे पूरा कीजिए ताकि आपका जन्म सफल हो



1. सो क्या तुम समझते हो कि हमने तुम्हें व्यर्थ ही पैदा किया और तुम हमारे पास पलटकर नहीं आओगे ? -कुरआन, 23, 115

2. उस (प्रभु) ने ही मृत्यु और जीवन को बनाया है ताकि तुम्हें परखे कि तुम में से कौन अच्छे कर्म करता है और वह ज़बर्दस्त क्षमाशील है। -कुरआन, 67, 2